गेम्स मेडल
खेल | परिणाम | खेल | इवेंट |
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खेल | परिणाम | खेल | इवेंट |
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रियो 2016 2016
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#=9 | Archery | Individual |
अतानु दास जीवनी
रियो 2016 की सुबह तेज़ हवा के बीच राउंड ऑफ़-16 में दक्षिण कोरियाई तीरंदाज ली सेउंग-यू के ख़िलाफ़ अतानु दास को पांचवें सेट के अपने अंतिम शॉट में पर्फ़ेक्ट-10 की जरूरत थी ताकि प्रतियोगिता को शूट-ऑफ में ले जाया जा सके। लेकिन मात्र मिलीमीटर के अंतर की वजह से अतानु दास का ओलंपिक में पदक जीतने का सपना उस समय ख़त्म हो गया।
स्थितियां, क़िस्मत या अनुभवहीनता – कोलकाता के तीरंदाज के लिए इन तीनों मे से कोई भी वजह हो सकती है जिससे उनका निशाना चूक गया।
लेकिन अतानु दास मानते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह उनकी मानसिकता थी, जिसपर वह अब काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “मेरे रियो अनुभव के बाद, मैंने सीखा कि सही दिमाग़ होना कितना ज़रूरी है। हमारा खेल आत्मविश्वास, एकाग्रता और दबाव पर कंट्रोल करने वाला है। पदक और पदक के बीच का अंतर बिल्कुल महीन है।‘’
यह वही गुण हैं, जिसे अब भारतीय तीरंदाज़ समझ चुके हैं और बहुत कम समय के अंदर ही इसने भारतीय पुरुषों के तीरंदाजी में अतानु को सबसे अलग कर दिया है।
अतानु दास का जन्म 5 अप्रैल 1992 को पश्चिम बंगाल के बारानगर में हुआ था। 14 साल की उम्र में उन्होंने तीरंदाज़ी में अपनी रुचि दिखाई और कुछ वर्षों में वो अपने कौशल को तराशने के लिए टाटा तीरंदाजी अकादमी पहुंच गए।
कोरिया के कोच लिम चाओ वोंग की ट्रेनिंग में अतानु दास एक होनहार तीरंदाज़ के रूप में छा गए और 2011 में पोलैंड के लेगिका में आयोजित 2011 विश्व युवा
चैंपियनशिप पुरुष टीम स्पर्धा में रजत पदक के साथ अपने पसंदीदा खेल में पहली उपलब्धि का लुत्फ़ उठाया।
उसी वर्ष ढाका में तीसरे एशियाई ग्रां प्री में उन्होंने रिकर्व पुरुषों की व्यक्तिगत और मिश्रित टीम स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक और रिकर्व पुरुषों की टीम स्पर्धा में
कांस्य पदक जीता। हर गुजरते साल के साथ अतनु दास बड़े होते गए और वरिष्ठ सर्किट में खुद को स्थापित करने के लिए प्रयासरत रहे। और फिर 2016 तक वह सुर्ख़ियों में आ चुके थे।
2016 में रियो में ओलंपिक के लिए पुरुषों की श्रेणी में भारत ने सिर्फ एक कोटा स्थान हासिल करने के साथ, तीरंदाजों का चयन करने के लिए आर्चरी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने ट्रायल का सहारा लिया।
जयंत तालुकदार और मंगल सिंह चंपिया जैसे अनुभवी तीरंदाजों के रहते हुए युवा अतानु दास के लिए ओलंपिक में मौक़ा मिलना मुश्किल था।
लेकिन अतानु दास ने सही समय पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए ’ए’ गेम के साथ अपने पहले ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया।
रियो खेलों में पुरुषों की व्यक्तिगत स्पर्धा में रैंकिंग राउंड में सम्मानजनक पांचवां स्थान हासिल करने के बाद, अतानु दास से उम्मीद की जा रही थी कि वह नॉक-आउट में भी बेहतरीन मुकाबला करेंगे और वह निराश नहीं करेंगे।
भारतीय तीरंदाज ने नेपाल के जितबहादुर मुक्तन को पीछे छोड़ दिया और फिर क्यूबा के एंड्रेस पेरेज के खिलाफ प्री-क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिए करीबी मुकाबला किया। हालाँकि, उनका सफ़र इससे आगे नहीं जा सका, क्योंकि अतानु दास को एक करीबी प्रतिस्पर्धा में ली सेउंग-युन के ख़िलाफ़ हार का घोंट पीना पड़ा।
इतना ही नहीं अपने पहले ओलंपिक में उनका प्रदर्शन कितना शानदार था, उसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिनसे अतानु को बेहद क़रीबी मुक़ाबले में हार मिली थी, उसी तीरंदाज़ ने प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।
हाल के सालों में अतानु दास अपने खेल को अगले स्तर तक ले जाने पर क़ामयाब रहे हैं। तरुणदीप राय, जयंत तालुकदार और प्रवीण जाधव के साथ उन्होंने पुरुषों की रिकर्व श्रेणी में एक मज़बूत टीम बनाई है।
इस टीम के साथ अतानु दास ने टोक्यो ओलंपिक के लिए पुरुषों की रिकर्व टीम स्पर्धा में एक कोटा स्थान 2019 विश्व चैंपियनशिप में रजत-पदक के साथ सील कर दिया।
अतानु दास मौजूदा समय में भारत पेट्रोलियम के स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड के साथ कार्यरत हैं और उनकी मंगेतर हैं साथी तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, जो पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 तीरंदाज़ भी रह चुकी हैं और एक ओलंपियन भी हैं।