अगर हौसले बुलंद हों तो जीवन में कुछ भी हासिल करना और कुछ भी कर गुजरना मुमकिन हो जाता है। फिर चाहे हालात कुछ भी क्यों ना हों, फिर चाहे आप किसी छोटे से गांव से ही क्यों ना ताल्लुक रखते हों या फिर चाहे आप पैसों की तंगी से ही क्यों ना जूझ रहे हों। भारत में इन दिनों एक एथलीट का नाम हर किसी के जुबां पर है। कुछ ऐसे ही हालात से पार पाते हुए यह एथलीट आज दुनिया भर में अपना लोहा मनवा रहा है। यहां हम बात कर रहे हैं 19 वर्षीय भारतीय धावक हिमा दास की। असम के एक छोटे से गांव ढिंग में जन्मी हिमा ने हाल ही में पांच गोल्ड मेडल जीतकर सबको अपनी प्रतिभा का दीवाना बना दिया है। एक गरीब किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने वाली हिमा को ढिंग एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता है।
कभी धान के खेतों में नंगे पांव खेलती थी फुटबॉल
हिमा के पिता ढिंग गांव में ही दो बीघा ज़मीन पर खेती करते हैं। हिमा जब छोटी थीं तो इस ज़मीन से ही घर की जीविका चला करती थी। बचपन में उन्हें जब कभी भी समय मिलता तो वो लड़कों के साथ खेतों में नंगे पांव फुटबॉल खेला करती थी। यह वह समय था जब उनका फुटबॉल के प्रति लगाव शुरू हुआ। लेकिन तक़दीर को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। एक दिन हिमा के पीटी टीचर ने उन्हें फुटबॉल खेलते हुए देखा और उनकी फुर्ती से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिमा को एथलेटिक्स में अपना करियर बनाने की सलाह दे डाली। टीचर की सलाह को गंभीरता से लेते हुए हिमा ने अपने पिता के खेत में ही स्प्रिंट की प्रैक्टिस शुरू कर दी और गुहावाटी में आयोजित हुए 100 मीटर की रेस में भाग लिया। हालांकि उन्हें इस इवेंट में कांस्य पदक मिला लेकिन इसके बाद उन्हें अपने करियर में सही दिशा मिल गई। इसके बाद देखते ही देखते उन्होंने लोकल लेवल पर रेसिंग की दुनिया में एक ख़ास मुकाम हासिल कर लिया।
पहनने को नहीं थे जूते
एक समय ऐसा भी था जब पैसों की कमी के चलते हिमा रेस के लिए जूते नहीं ख़रीद पाती थीं। जिला स्तर की 100 और 200 मीटर की स्पर्धा में उन्होंने ना सिर्फ सस्ते जूते पहनकर भाग लिया बल्कि उस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर सभी को हैरान भी किया। ज़िला स्तर पर शानदार प्रदर्शन करने के बाद स्थानीय कोच निपुन दास की सलाह पर वह उनके साथ गुवाहाटी चली गई। इसके बाद उनका वह सफर शुरू हुआ जो उन्हें फर्श से अर्श तक ले गया।
हिमा दास आज भारत की उन चुनिंदा धावकों में से एक हैं जो देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरान्वित कर रही हैं। अभी हाल ही में जुलाई के महीने में 5 स्वर्ण पदक जीतकर खेल की दुनिया में उन्होंने अपना परचम लहराया। 20 दिनों के भीतर 5 स्वर्ण पदक अपने नाम करके उन्होंने यह बात तो साबित कर दी है कि मेडल के लिए उनकी यह दौड़ अब ज़ोर पकड़ चुकी है।
यह पहला मौका नहीं है जब हिमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नाम का लोहा मनवाया है। साल 2018 में हुए एशियाई खेलों में 400 मीटर की रेस में भाग लेते वह सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। इससे पहले हिमा ने 12 जुलाई 2018 को फिनलैंड के टेम्पेरे में हुए आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था। हिमा ने राटिना स्टेडियम में खेले गए फाइनल में 51.46 सेकेंड समय के साथ गोल्ड पर अपना कब्ज़ा जमाया था। इसी के साथ वह इस चैंपियनशिप में सभी आयु वर्गो में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हिमा दास आज भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला धावक है। ऐसे में यह कहना गलत ना होगा कि हिमा की जीत यह भूख सभी खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है। यही वजह है कि टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में उन्हें दौड़ते देखना हर हिंदुस्तानी का ख़्वाब है।