भारतीय टेनिस दिग्गज लिएंडर पेस टोक्यो 2020 में आठवीं बार ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेगें। लेकिन अटलांटा में उनकी जीत यकीनन सबसे यादगार रही। आखिरी बार 1980 में मास्को में ओलंपिक पदक जीतने के बाद से भारत पोडियम स्थान हासिल करने में असफल रहा था। भारतीय टुकड़ी को चार ओलंपिक संस्करणों में बिना किसी पदक के ही वापसी करनी पड़ी। इस निराशा का अंत 1996 के अटलांटा ओलंपिक के साथ हुआ, जहां लिएंडर पेस ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर देश में टेनिस के खेल को नई दिशा देने का काम किया।
अटलांटा ओलंपिक में पेस
1996 अटलांटा गेम्स में पेस एक वाइल्डकार्ड प्लयेर के रूप में हिस्सा लेते नज़र आए। अपने पहले राउंड में पेस की भिडंत लोकल फेवरेट रिची रेनेबर्ग से हुई। हालांकि 6-7, 7-6 से मैच टाई पर चल रहा था लेकिन चोट लगने के कारण रिची को खेल बीच में छोड़ना पड़ा और इस तरह से पेस को 1996 अटलांटा ओलंपिक में पहली जीत हासिल हुई।
पेस का आगे का सफ़र मानों तेज़ी से चला और इस 22 वर्षीय भारतीय स्टार ने सेमीफाइनल में अपनी जगह बना ली। हर खेल प्रेमी के लिए यह सफ़र यादगार बना और पेस के खेल करियर में एक नया अध्याय जुड़ गया।
सेमीफाइनल का यादगार मुकाबला
पेस का अगला मैच अमरीकी स्टार आंद्रे अगासी के साथ था। उस समय अगासी टेनिस की दुनिया के सबसे बड़े सितारों में से एक थे जो कि तकनीक और टेम्परामेंट के धनी थे। हालांकि कोई जानता नहीं था कि भारत के लिएंडर पेस आंद्रे को बेहद कड़ी टक्कर दे पाएंगे और जीत की राह उनके लिए मुश्किल कर पाएंगे। पेस यह मैच हार तो गए लेकिन अपने दमदार प्रदर्शन की वजह से सभी के दिलों में जगह बनाने में सफल रहे। इस मैच का फाइनल स्कोर आंद्रे के हक मे 6-7, 3-6 से गया।
ऐतिहासिक ब्रॉन्ज़ मैच
अब बारी थी ब्रॉन्ज़ पर कब्ज़ा करने की और अपना आख़िरी मैच खेलते हुए पेस ने फर्नांडो मेलिगेनी 3–6, 6–2, 6–4 से पटकनी देते हुए मुकाबले को अपने नाम किया। इस बेहद दिलचस्प मुकाबले ने भारत को ब्रॉन्ज़ और एक नया उभरता सितारा दे दिया। वह सितारा जिसने भारत में टेनिस खेल को एक नया आयाम देने का काम किया।
लिएंडर पेस ने अटलांटा की ज़मीं पर भारत का नाम रोशन कर दिया और भारत ने भी उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनकी इस उपलब्धि पर उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न से नवाज़ा गया। ओलंपिक 1996 के तजुर्बे ने मानों पेस को एक नया हौसला दे दिया, जिसने उनके खेल करियर को आगे बढ़ाने में मदद की।
आज पेस की गिनती विश्व के बड़े टेनिस खिलाड़ियों के साथ की जाती है। उनका परिवार भी भारतीय खेल संस्कृति से वाकिफ था जिसके चलते खेल के शौकीन रह चुके पेस के पिता 1972 ओलंपिक खेलों में हॉकी खेलते हुए भारत का नाम रोशन किया और उनकी मां ने लंबे अरसे तक बास्केटबॉल खेलते हुए भारत के गौरव को ऊंचा रखा।
एक आखिरी दहाड़
अटलांटा में पेस की उस ऐतिहासिक जीत के बाद से भारत सभी ओलंपिक में कम से कम एक पदक जीतने में कामयाब रहा। अब, जहां नए खिलाड़ियों की टुकड़ी टोक्यो 2020 में शामिल होने के लिए तैयारी में जुटी है, वहीं पेस अपने आखिरी ओलंपिक में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे।
अगले साल टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों के बाद पेस टेनिस को तो अलविदा कह देंगे। लेकिन उम्मीद है कि वह भविष्य में टेनिस खिलाड़ियों को चैंपियन बनाने की ओर अपना योगदान देते रहेंगे।